My friend Dr Nutsure Satwik posted this . A classic example of how different people perceive a given visual differently.
He wanted to convey that this pose was a classic pose of someone waiting for an answer . And that , at the end of life, this was all that remained , the exact weight of a person , plus , as he says about 500 gms of carbon element. Everything else, the ego, the power et al, simply evaporates into nothingness .
Not being a medical person, my immediate impression was about how young the person was, how bare everything was , and how despite it all , there was a sense of unanswered questions that the skeleton had. The skeleton had an expression , if such a thing is possible, and the words just poured out of my keyboard.
Perhaps it was Nirbhaya and Delhi, and the thought process happened in Hindi...
जाने वोह कैसी आँखें थी ,
जिन्होंने वह डाकुओंको देखा
जिन्होंने मेरी अबोधता और बचपन लूटा। ..
जाने वह कैसा नाक था ,
जिसे बुराई की अमङ्गल बदबू आयी. ..
जाने वह कैसा मुँह था ,
जिससे भरवाए दुपट्टे के कारण
आवाज़ निकल नहीं पाया।
मै बैठी हूँ ,
बिना हृदयी , बिना श्वास , बिना पानी ,
हताश विचारमग्न ,
और रोज जो लड़कियों के साथ हो रहा है
वह देख कर सोचती हूँ,
"हे भगवान् , मुझे एक दो हड्डियां कम दे,
लेकिन कौमार्य लूटने वाले डाकुओंका
आतेही गला काट सके ,
ऐसा कुछ शरीर का अंग दे। ..."
काश, आप मेरे जैसे हड्डी सम्पन्न शक्स को
फिर ऐसे यहां बैठे हुए नहीं देखेंगे ....
जिन्होंने वह डाकुओंको देखा
जिन्होंने मेरी अबोधता और बचपन लूटा। ..
जाने वह कैसा नाक था ,
जिसे बुराई की अमङ्गल बदबू आयी. ..
जाने वह कैसा मुँह था ,
जिससे भरवाए दुपट्टे के कारण
आवाज़ निकल नहीं पाया।
मै बैठी हूँ ,
बिना हृदयी , बिना श्वास , बिना पानी ,
हताश विचारमग्न ,
और रोज जो लड़कियों के साथ हो रहा है
वह देख कर सोचती हूँ,
"हे भगवान् , मुझे एक दो हड्डियां कम दे,
लेकिन कौमार्य लूटने वाले डाकुओंका
आतेही गला काट सके ,
ऐसा कुछ शरीर का अंग दे। ..."
काश, आप मेरे जैसे हड्डी सम्पन्न शक्स को
फिर ऐसे यहां बैठे हुए नहीं देखेंगे ....
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